हर साल अषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथपुरी की रथ यात्रा निकाली जाती है. रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के अलावा उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ भी निकाला जाता है.
क्यों निकालते हैं रथ यात्रा
इस रथ यात्रा को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने उनसे द्वारका के दर्शन कराने की प्रार्थना की थी. तब भगवान जगन्नाथ ने अपनी बहन की इच्छा पूर्ति के लिए उन्हें रथ में बिठाकर पूरे नगर का भ्रमण करवाया था. इसके बाद से इस रथयात्रा की शुरुआत हुई थी.
इस रथ यात्रा के बारे में स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण और ब्रह्म पुराण में भी बताया गया है. इसलिए हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व बताया गया है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति इस रथयात्रा में शामिल होकर इस रथ को खींचता है उसे सौ यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है.
कैसे निकलती है रथ यात्रा
यात्रा की शुरुआत सबसे पहले बलभद्र जी के रथ से होती है. उनका रथ तालध्वज के लिए निकलता है. इसके बाद सुभद्रा के पद्म रथ की यात्रा शुरू होती है. सबसे अंत में भक्त भगवान जगन्नाथ जी के रथ ‘नंदी घोष’ को बड़े-बड़े रस्सों की सहायता से खींचना शुरू करते हैं.
रथ यात्रा पूरी कर भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर मुख्य मंदिर से ढाई किमी दूर गुंडिचा मंदिर जाएंगे. यहां सात दिन रुकने के बाद आठवें दिन फिर मुख्य मंदिर पहुंचेंगे. कुल नौ दिन का उत्सव पुरी शहर में होता है.
रोचक तथ्य
यात्रा के तीनों रथ लकड़ी के बने होते हैं जिन्हें श्रद्धालु खींचकर चलते हैं. भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए लगे होते हैं एवं भाई बलराम के रथ में 14 व बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं.
भगवान जगन्नाथ का रथ- इसके तीन नाम हैं जैसे- गरुड़ध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष आदि. 16 पहियों वाला ये रथ 13 मीटर ऊंचा होता है.
बलभद्र का रथ- इनके रथ का नाम तालध्वज है. रथ पर महादेवजी का प्रतीक होता है. इसके रक्षक वासुदेव और सारथी मातलि हैं. रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं.
सुभद्रा का रथ- इनके रथ का नाम देवदलन है. रथ पर देवी दुर्गा का प्रतीक मढ़ा जाता है. इसकी रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन हैं. रथ का ध्वज नदंबिक कहलाता है.
752 चूल्हों पर बनता है खाना
भगवान जगन्नाथ के लिए जगन्नाथ मंदिर में 752 चूल्हों पर खाना बनता है. इसे दुनिया की सबसे बड़ी रसोई का दर्जा हासिल है. रथयात्रा के नौ दिन यहां के चूल्हे ठंडे हो जाते हैं. गुंडिचा मंदिर में भी 752 चूल्हों की ही रसोई है, जो जगन्नाथ की रसोई की ही रिप्लिका मानी जाती है. इस उत्सव के दौरान भगवान के लिए भोग यहीं बनेगा. केन्द्रीय अध्यक्ष भुनेश्वर पटेल व अखिल भारतीय अघरिया समाज केन्द्रीय समिति रायगढ़